क्या पति के देहान्त के बाद पत्नियां खो देती थीं जीने का अधिकार ?

सती प्रथा एक प्राचीन भारतीय सामाजिक और धार्मिक परंपरा थी जिसमें किसी महिला को अपने पति की मृत्यु के बाद उसकी चिता पर जीवित जलाकर आत्मदाह करने के लिए बाध्य किया जाता था।

यह प्रथा मुख्यतः हिंदू धर्म में प्रचलित थी, विशेष रूप से राजपूत समाज में। सती प्रथा को धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक मान्यताओं का हिस्सा माना जाता था, 

जिसमें यह माना जाता था कि पत्नी का अपने पति के साथ मरना उसके प्रति उसकी निष्ठा और पवित्रता का प्रमाण है। , 

सती प्रथा की आलोचना कई सदियों से होती आ रही है और इसे अमानवीय और बर्बर प्रथा माना गया है।  ,

19वीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान समाज सुधारकों और धार्मिक नेताओं के प्रयासों से सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया। ,

1829 में ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया और इसके खिलाफ सख्त कानून बनाए गए।

सती प्रथा का अंत सामाजिक सुधारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है 

इसे भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकारों और उनके सम्मान की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाता है।

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